बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वायुमण्डलीय प्रकीर्णन को विस्तार से समझाइए।
उत्तर -
(Atmospheric Scattering)
वायुमण्डलीय गैसों के अणुओं द्वारा विद्युत-चुम्बकीय विकिरण की पुनर्दिशा निर्धारण करने को प्रकीर्णन कहते हैं। विकिरण का चारों दिशाओं की ओर विक्षेपण या विसरण होना विकिरण कहलाता है। प्रकीर्णन के कारण प्रतिबिम्ब विपर्यास की कमी हो जाने से धरातल का स्पेक्ट्रमी प्रतिबिम्ब बदल जाता है। ऐसे में वायुमण्डल में विद्युत चुम्बकीय विकिरण के प्रकीर्णन के सुदूर संवेदन पर दो विपरीत प्रभाव पड़ते हैं-
पहला यह प्रतिबिम्ब के विपर्यास को कम कर देता है और दूसरा यह धरातलीय वस्तुओं में स्पेक्ट्रल संकेतों को परिवर्तित कर देता है जिन्हें संवेदक द्वारा देखा जाता है।
विद्युत चुम्बकीय विकिरण का प्रकीर्णन वायुमण्डल में विद्यमान गैस अणुओं के सापेक्षिक आकार, वायुमण्डल से होकर आने वाली उत्सर्जित ऊर्जा की दूरी तथा तरंग दैर्ध्य विकिरण पर निर्भर करता है। वायुमण्डलीय अणु विभिन्न आकारों में होते हैं। धुन्ध कणों के आकार का निर्माण आर्द्रता के संघनन से होता है जिनका आकार 102 pm तक होता है। द्रव्य के कणों की सान्द्रता समय के साथ बदलती रहती है। अतः प्रकीर्णन का प्रभाव प्रमुख विषय होता है जो समय के साथ-साथ बदलता रहता है। स्वच्छ व साफ दिन में रंग चमकीले दिखाई देते हैं। सौर ऊर्जा का 95% प्रकाश हमारी आँखों से दिखाई देता है तथा 5% प्रकाश वायुमण्डल द्वारा बिखेर दिया जाता है। इसके विपरीत बादल युक्त या धुन्ध युक्त दिनों में रंग धूमिल पड़ जाते हैं। ऐसी स्थिति में हमारी आँखों में जो प्रकाश पड़ता है वह बिखरा हुआ होता है।
कणों के आकार के आधार पर प्रकीर्णन तीन प्रकार का होता है-
(1) रैले प्रकीर्णन ( Rayleigh Scattering) - विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा का वायुमण्डल में निहित कार्यों के साथ अन्तर्क्रिया होने से जो प्रकीर्णन होता है उसे रैले प्रकीर्णन कहते हैं। विकिरण तरंग दैर्ध्य का मान, कणों के आकार से बहुत अधिक होने पर ही रैले प्रकीर्णन प्रतीत होता है। सामान्यतः दृश्य रेन्ज में (0.4um से 0.7um) स्वच्छ वातावरण के अणुओं (102 Xm) द्वारा प्रकीर्णन किया जाता है। उदाहरण के लिए ये धूल के महीन कण तथा गैसों के अणु - नाइट्रोजन (NO2) तथा ऑक्सीजन (O2) होते हैं।
इसी प्रकीर्णन के कारण ही आकाश का रंग नीला दिखता है। दृश्य प्रकाश में नीले रंग की तरंग दैर्ध्य का मान सबसे कम तथा लाल रंग का सबसे अधिक होता है। अतः नीले रंग का प्रकीर्णन लाल रंग से बहुत अधिक होता है। यही कारण है कि हमें आकाश नीला दिखाई देता है।
रैले प्रकीर्णन के कारण ही स्पेक्ट्रम के नीले भाग के बहु- स्पेक्ट्रल सूचनायें कम उपयोगी होती हैं। रैले प्रकीर्णन आगे-पीछे दोनों ही तरफ होता है। तेज पश्चवर्ती प्रकीर्णन के कारण ही वायु फोटोग्राफी में काले धब्बे दिखाई देते हैं जो धुँधले वातावरण में विस्तृत कोणीय कैमरे के द्वारा चित्रित किये जाते हैं। ऐसी दशा में सौर विकिरण, संसूचक के दृश्यमान क्षेत्र में परिलक्षित पड़ता है। इस अवस्था में रैले प्रकीर्णन के कारण प्रतिबिम्ब धुंधले हो जाने से अस्पष्ट दिखते हैं।
प्रकीर्णन के अभाव में प्रतिबिम्ब काला दिखाई देता है। दिन के समय सौर प्रकाश वायुमण्डल से लघु दूरी तय कर आता है। सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य नीला नहीं नारंगी दिखाई देता है, क्योंक उस समय प्रकाश हम तक पहुँचने से पूर्व, वायुमण्डल से लम्बी दूरी तय करता है। लघु तरंग दैर्ध्य में विकिरण कुछ दूरी तय करने के बाद बिखर जाता है और दीर्घ दूरी की तरंग दैर्ध्य विकिरण पृथ्वी तल तक पहुँचती है। यही कारण है कि आकाश नीला नहीं नारंगी व लाल दिखाई देता है। रैले, प्रकीर्णन, दृश्य स्पेक्ट्रम रैले में अधिक ऊँचाई वाले स्थानों पर सुदूर संवेदन प्रक्रिया को हानि पहुँचाता है। परावर्तित ऊर्जा, स्पेक्ट्रल विशेषताओं में विकार उत्पन्न करते हैं। रैले प्रकीर्णन के द्वारा लघु तरंग दैर्ध्य पर अत्यधिक आंकलन किया जाता है। अत्यधिक ऊँचाई से लिये गये रंगीन फोटो चित्रों में हल्का नीलापन दृष्टिगोचर होता है। रैले प्रकीर्णन फोटोचित्रों में स्पष्टता कम हो जाती है जिसके कारण ये विश्लेषण क्षमता को कम कर देते हैं। इसी प्रकार रैले प्रकीर्णन का अंकीय वर्गीकरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
रैले प्रकीर्णन के घटकों को नीले रंग की छन्नी लगाकर तैयार किया जा सकता है। गहरे धुंध की अवस्था में जब सभी तरंग दैर्ध्य समान रूप से प्रकीर्णित होती है तो धुंध को फिल्टर लगाकर दूर नहीं किया जा सकता है। धुंध का प्रभाव तापीय अवरक्त क्षेत्र में कम होता है जबकि लघु तरंग विकिरण पर धुंध की उपस्थिति का कुछ प्रभाव नहीं पड़ता है। ये तरंगें बादलों को भी पार कर सकती है।
(2) मी - प्रकीर्णन - जब विकिरण तरंग दैर्ध्य का मान प्रकीर्णन करने वाले कणों के आकार के बराबर होता तो वह प्रकीर्णन मी प्रकीर्णन कहलाता है। यह प्रकीर्णन वायुमण्डल में विद्यमान जल वाष्प तथा धूलिकण के कारण होता है। सुदूर संवेदन में यह प्रकीर्णन स्पष्ट करता है कि किस प्रकार वायुमण्डलीय धुंध, बहु- स्पेक्ट्रल प्रतिबिम्बों में गिरावट के लिये उत्तरदायी हैं। तरंग दैर्ध्य की तुलना में अणुओं के आकार के आधार पर भी प्रकीर्णन 24 से 2° तक आ सकता है। मी - प्रकीर्णन में आपतित प्रकाश अग्रगामी दिशा में ही प्रकीर्णित होता है। लम्बे तरंग दैर्ध्य पर मी-प्रकीर्णन का प्रभाव अधिक होता है। इसी कारण मी-प्रकीर्णन अल्ट्रा वाइलेट से मध्य इन्फ्रारेड रेन्ज तक प्रभाव डालता है।
(3) अवरणात्मक प्रकीर्णन - जब प्रकीर्णन करने वाले कणों का आकार, विकिरण तरंग दैर्ध्य करने वाले कणों से बहुत अधिक होता है तब उस प्रकीर्णन को अवरणात्मक प्रकीर्णन कहते हैं। यह प्रकीर्णन तरंग दैर्ध्य पर निर्भर नहीं करता है। उदाहरण के लिये जल वाष्प तथा धूल कण जिनका आकार सामान्यतः 5 से 10 pm तक होता है, विकिरण का अवरणात्मक प्रकीर्णन करती हैं क्योंकि इनमें दृश्य प्रदेश से अवरक्त प्रदेश के परावर्तित अवरक्त बैण्ड तक के सभी तरंग दैयों का समान रूप से प्रकीर्णन करने की क्षमता होती है। वायुमण्डल में बादल या गहरा धुआं होने के कारण ही यह प्रकीर्णन होता है। बादलों में जल वाष्प होने से प्रकाश के कण बिखरकर बादलों का रंग सफेद कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप प्राप्त आँकड़ों अथवा सूचनाओं में बहुत भेद होते हैं। इसके कारण सभी तरंग दैर्ध्य में समान बदलाव प्रतीत होता है। अवरणात्मक प्रकीर्णन में धुंध की उपस्थिति के कारण आकाश का रंग सफेद प्रतीत होता है। चूँकि इसमें दृश्य प्रदेश के नीले, हरे व लाल सभी बैण्डों का समान मात्रा में प्रकीर्णन हो जाता है इसलिए हमें मेघ व कुहरे का रंग श्वेत दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकीर्णन की उपस्थिति में यह आभास होता है कि वायुमण्डल में इच्छित दृश्य से ऊपर बड़े आकार के कण हैं जो कि अपने में एक उपयोगी सूचना है।
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